भूख के तिमिर में दाल भात का प्रकाश
—-आर0के0 पाण्डेय एडवोकेट
एडीटर, भईया जी का दाल भात।
पर्दाफाश न्यूज टीम
प्रयागराज
प्रयागराज, 26 अक्टूबर 2019। तीर्थराज प्रयागराज के संगम तट पर एक वर्ष पूर्व भूखमुक्त भारत संकल्प के साथ शुरू हुआ भईया जी का दाल भात द्वारा प्रतिदिन भूखों को निःशुल्क भोजन वितरण अब प्रयागराज की पहचान बन चुका है जोकि पूरे भारत वर्ष में एक वैचारिक क्रांति का स्वरूप ग्रहण करता जा रहा है जिसके फलस्वरूप इसके संयोजक मां काली शक्ति केंद्र के मुख्य साधक अतुल कुमा गुड्डू मिश्र के साथ हजारों अनुयायियों ने भी भूखमुक्त भारत संकल्प को अपनाकर इस महायज्ञ में अपनी क्षमता व सुविधानुसार आहुति देना प्रारम्भ कर दिया है।
जानकारी के अनुसार एक सद्गृहस्थ नवयुवक अतुल कुमार गुड्डू मिश्र ने अनवरत 12 वर्षों तक प्रयागराज के संगम तट पर माघ मेला, कुम्भ व महाकुम्भ में संगम तट पर कठिन साधना के बाद तीर्थराज प्रयागराज व मां काली की प्रेरणा से भूखमुक्त भारत का संकल्प लिया जिसमे उनके अभिन्न साथी सारथी यशवंत सिंह सहित हजारों अनुयायियों के सेवा समर्पण भी शामिल हो गया है।
अब प्रारम्भ हुआ भईया जी का दाल भात का तात्विक व व्यवहारिक महत्व,
“भईया”
यदि मैं ईमानदारी से लिखू तो एक शब्द मेरे व्यक्तिगत जीवन को बहुत प्रभावित किया है और वो है ‘भईया’
भाई का भोजपुरी रूपांतरण है और हम सभी पूर्वांचल के लोगो की बोल चाल की शायद लगभग यही भाषा है।।
स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व धर्म संसद शिकागो में पहला शब्द ‘my respected brother and sister’ बोला था,मुझे नही पता विश्वबंधुत्व की प्रबलतम भावना का बोध सही अर्थों में यही हो।
खैर भारतीय परिवार व्यवस्था का सबसे बड़ा व आत्मीय संबंध शब्द कोई है तो वो है ‘भईया’।
इस शब्द अपने आप मे पूर्ण है,जैसे छोटे-बड़े,जातीय- विजातीय,अपने-पराये धर्मो के लिए भी बोल जाय तो सम्मान सूचक है। जिसको बोलने से अपने गांव की माटी-परिपाटी, गली- मोहल्लों,झुग्गी-झोपड़ी का व अपने परिवार की याद आये वही हमारे कार्यो का आधार विंदु हो तो क्या कहना?
‘दाल भात’
हमे नही लगता है कि दाल भात कहने मात्र से आप को अपने बचपन की याद न आये,
मुझे तो आती है शायद आप को भी आ ही गयी होगी।
माँ द्वारा एक ही थाली में परोसा गया करछी से भात व उसी के ऊपर दाल, मुझे तो अपने जीवन मे उससे स्वादिष्ट आज तक कुछ मिला नही खाने को।
ऐसा भोजन जो सर्वाधिक स्वादिष्ट व सर्व प्रिय हो(बूढ़े, बच्चे, नवजवान,स्त्री-पुरुष,व सच कहिये तो अन्य जीवों का भी पसंदीदा है “भात”।
‘भात’ की यदि पारंपरिक व व्यवहारिक चर्चा न करे तो बात अधूरी रह जायेगी।
भारतीय संस्कृति व शंसकारो में भात यानी तंदुल, यानी चावल, यानी अक्षत,के बिना नतो जन्म शुभ है नतो मरण श्रध्य है,
जन्म के समय अक्षत,
विवाह में अक्षत,बहु गृह प्रवेश में चावल से भरे लोटे को गिराना,
मरण पर पिंड दान चावल के आटे से,और बहुत सी परम्परा में शामिल।
भगवान कृष्ण को महापंडित सुदामा द्वारा तीन मुट्ठी चावल का भोग…
इत्यादि भात का प्रासंगिक महत्व है।
भात व दाल को पकाने में सिर्फ पानी की जरूरत है,
स्वाद महलो में सिद्ध होने वाले चावल व झोपड़ी में सिद्ध वाले में कोई अंतर नही,सदैव एक रहता है। ग्रहण करने के लिए कोई विशेष पात्र की आवश्यकता नही,कर को भी पात्र बन सकते है। परम पूज्य स्वामी करपात्री जी महाराज इसके एक विनम्र उदाहरण है।
दाल भात भारतीय भौगोलिक परिदृश्य का भोजन है जो सभी प्रान्तों में पैदा होता है और खाने में पसंद कोय जाता है।।
भारतीय समाज व्यवस्था में इसके महत्व को नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल है।।
जैसे यदि किसी सामाजिक पारिवारिक आयोजन में आप का कोई भात न खाए तो समाज से आप बहिष्कृत है कुजात है,
भात खाना व खिलाना अपने आप मे बहुत बड़ा सम्मान की बात है। अतः इन सभी विन्दुओ को धयान में रखकर प्रारम्भ हुआ भूख मुक्त भारत का संकल्प।
दाल भात भारतीय भौगोलिक परिदृश्य का भोजन है जो सभी प्रान्तों में पैदा होता है और खाने में पसंद कोय जाता है।।
भारतीय समाज व्यवस्था में इसके महत्व को नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल है।।
जैसे यदि किसी सामाजिक पारिवारिक आयोजन में आप का कोई भात न खाए तो समाज से आप बहिष्कृत है कुजात है,
भात खाना व खिलाना अपने आप मे बहुत बड़ा सम्मान की बात है। अतः इन सभी विन्दुओ को धयान में रखकर प्रारम्भ हुआ भूख मुक्त भारत का संकल्प।
भारत मे भूखे को भोजन कराना,हमारे अभिमान का कारण न बने बल्कि उसमे झलक हो आत्मीयता की,सम्मान की,पवित्रा की,अपने संस्कृति व संस्कार की,मर्यादा की, पुरुषार्थ की,पहचान की व अपने जाती धर्म व सम्प्रदाय के नाम की।।
इस सभी के व्यापकता को लेकर 23 नंवबर 18 से तीर्थ नगरी प्रयागराज से निरंतर चल रहा है भूखमुक्त भारत का संकल्प,
माँ काली शक्ति साधना केंद्र के तत्वाधान में “भईया जी का दाल भात”
भईया जी का दाल भात के पथ पर एक शेर उपयुक्त लगता है
🤝
अंधेरों में चलने का हुनर हमें मालूम है
हाथों में हाथ लेकर क़ाफि़ला करना होगा। 🤝
पूरी धरती पर कोई भूखा न रहे
हमें छोटा अपना निवाला करना होगा।
🤝
अंधेरों में चलने का हुनर हमें मालूम है
हाथों में हाथ लेकर क़ाफि़ला करना होगा। 🤝
और इसी लेख के कुछ अंश एक फ़ोटो के साथ चित्रण जोकि नीचे दिया गया है वह वैश्विक स्तर पर भूखमुक्त की आवश्यकता को प्रकट करता है।
साथ में भेजी जा रही तस्वीर देखिये ,कुछ याद आया आपको? इसे नाम दिया गया था
“The vulture and the little girl ( गिद्ध और नन्हीं लड़की )”।
इस तस्वीर में एक गिद्ध भूख से मर रही एक छोटी लड़की के मरने का इंतज़ार कर रहा है । इसे एक साउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट केविन कार्टर ने 1993 में सूडान के अकाल के समय खींचा था और इसके लिए उन्हें पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । लेकिन कार्टर इस सम्मान का आनंद कुछ ही दिन उठा पाए क्योंकि कुछ महीनों बाद 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अवसाद से आत्महत्या कर ली, क्यों ?
दरअसल जब वे इस सम्मान का जश्न मना रहे थे तो सारी दुनिया में प्रमुख चैनलों और ऩ्यूज पेपर्स में इसकी चर्चा हो रही थी परन्तु उनका अवसाद तब शुरू हुआ जब एक ‘फोन इंटरव्यू’ के दौरान किसी ने पूछा कि उस लड़की का क्या हुआ? कार्टर ने कहा कि वह देखने के लिए रुके नहीं क्यों कि उन्हें फ्लाइट पकड़नी थी। इस पर उस व्यक्ति ने कहा “मैं आपको बता रहा हूँ कि उस दिन वहां दो गिद्ध थे जिसमें एक के हाथ में कैमरा था।”
इस कथन के भाव ने कार्टर को इतना विचलित कर दिया कि वे अवसाद में चले गये और अंत में आत्महत्या कर ली।
आज भईया जी का दाल भात परिवार प्रयागराज के संगम तट पर बड़े लेटे हुए हनुमान मंदिर के बगल में प्रतिदिन हजारों भूखों को निःशुल्क भरपेट भोजन करा रहा है व जल्द ही प्रयागराज के विभिन्न अस्पतालों में मरीजों को भी भोजन, दूध व फल वितरित करने के साथ प0 बंगाल के हावड़ा सहित देश के दूसरे स्थानों पर भी भोजन वितरण की योजना बना रहा है परन्तु अधिक आवश्यकता इस बात की है कि समाज के लोग वैश्विक समस्या भूख को समझे व अपने सामर्थ्य व सुविधानुसार सामने आकर भूखमुक्त भारत संकल्प में अपना योगदान दें।

(लेखक मा0 उच्च न्यायालय इलाहाबाद में अधिवक्ता व वरिष्ठ समाजसेवी हैं।)