अधिवक्ता आर के पाण्डेय की कलम से
प्रयागराज
भारत वर्ष में केंद्र में सत्तारूढ़ मोदी सरकार में नई शिक्षा नीति 2019 के रिपोर्ट को यदि स्वीकार करके उसे अक्षरशः लागू कर दिया गया तो उससे बेरोजगारी दूर होने के बजाय बेरोजगारी बढ़ेगी। भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलेगा। जरूरत थी देश में पहले से चल रही शिक्षक भर्तियों में पारदर्शिता लाने की। न कि शिक्षको की नियुक्ति प्रक्रिया को जटिल बनाने की।
नई शिक्षा नीति आने के बाद देश भर में शिक्षको के खाली 13 लाख पद 2022 तक भरे जाने का दावा किया जा रहा है अकेले उत्तर प्रदेश में तीन लाख पद खाली है। लेकिन जिस तरह से शिक्षक बनने के लिए 6 स्टेप से गुजरना पड़ेगा भर्ती पूरी होने से पहले ही दम तोड़ देगी।
नई शिक्षा नीति में सरकार बेरोजगारी खत्म करने का भले ही दावा कर रही हो। लेकिन असल में पर्दे के पीछे तस्वीर कुछ और है। प्रक्रिया जटिल कर दी गई। ताकि लोग इसे पूरा न कर सके और नौकरी न देना पड़े।
उत्तर प्रदेश में योगी राज में आई यूपी की दो शिक्षक भर्तियां 68500 व 69 हजार ने लाखो युवाओ को निराश किया है।68500 भर्ती में खाली 27 हजार पद भरने से पहले ही सीबीआई की भेंट चढ़ गई। 69 हजार भर्ती भी विवादो में घिर गई। दोनो ही शिक्षक भर्तियों का भभिष्य अंधकार मय है।
ऐसा प्रतीत हो रहा है भर्ती को डिले करने की पीछे सरकार की मंशा 69 हजार व 68500 के बचे हुए 27 हजार पदो को नई शिक्षा नीति की चपेट में लाने की है।
ठीक उसी प्रकार आरटीएक्ट लागू होने के बाद वर्ष 2004, 05, 07 बैच के नियुक्त से वंचित विशिष्ट बीटीसी अभ्यर्थी टीईटी की जद में आ गए थे। हाईकोर्ट से भी इन्हें राहत नही मिल सकी। टीईटी उत्तीर्ण न हो पाने के चलते आज तक नौकरी से वंचित है।
28 जून 2018 को एनसीटीई बीएड को प्राईमरी में छूट देती है। सरकार18 नवम्बर18 को टीईटी व 6 जनवरी 2019 को सुपरटेट कराती है। फरवरी की कैबिनेट बैठक में 24 वे संशोधन के तहत बीएड को नियमावली में सम्मिलित किया जाता है जब कि 22 वें संशोधन के तहत 69 हजार भर्ती निकाली जाती है। सुप्रीम कोर्ट से पहले भर्ती निपटने वाली नही है। यह सब सरकार की सोची समझी रणनीति के तहत ही किया गया है।
